Monday, September 3, 2018

"बेनाम उत्पात"

कौन सा उत्पात उसके सिर चढ़ा है,
जाने किस गली में बेनाम खड़ा है।
चलूँ या रुकूँ समझ न आये,
आधे चाँद की नुकीली चांदनी;
मन उसके धँसी जाए,
चल देता हूँ सोचकर;
जैसे ही कदम बढ़ाये,
रोके काल रात का सन्नाटा;
जिया डर तले थरथराये।
कौन सा उत्पात उसके सिर चढ़ा है,
जाने किस गली में बेनाम खड़ा है।
अमानुष सा लाल चेहरा,
झांके छिपे नजर आये;
सूरज की लालिमा रात में ही,
अपना काम कर जाये;
पग-पग चले वो फिर भी,
रोके उसे हवाएँ सांये-सांये;
निकल पार उज्जवल सवेरा होगा,
सोचे बिना रुके चलता जाये।
कौन सा उत्पात उसके सिर चढ़ा है,
जाने किस गली में बेनाम खड़ा है।
भ्रम जाल का अँधेरा कटा,
सब कुछ स्पष्ट नजर आये;
उठ बैठा बेनाम स्वप्न से,
तेज साँसों से खुद को समझायें।
कौन सा उत्पात उसके सिर चढ़ा था,
जाने किस गली में बेनाम खड़ा था।

"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...