"आत्मा का आवरण हो गया चूर,
जब हो गयी वो स्वयं शरीर से दूर;
मिलन की आस में परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का वो अप्रतिम नूर।
पधारते हुए निहारा उन्हें,
पर थे वो कोसो दूर;
मिलन की आस मे परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का अप्रतिम नूर।"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
"अपमान का विष"
"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...
-
"आत्मा का आवरण हो गया चूर, जब हो गयी वो स्वयं शरीर से दूर; मिलन की आस में परिलक्षित सा, ऊपर वाले का वो अप्रतिम नूर। पधारते हुए निहा...
-
गौरवान्वित हूँ कि चालाक नही, खुश हूँ कि बेवकूफ ही सही; बेवकूफ भी हूँ कि बेवकूफ ही नही, खुश हूँ कि बेवकूफ ही सही। कर लेता नादानी एक बा...
Nice
ReplyDelete