"आनंदित है वो सर्वशक्तिमान,
क्यों ठहरा हैरान सा परेशान;
दुःख परिलक्षित करते सुख,
जैसे हवायें बदले अपना रुख;
हो सब संगी, साथी या घराती,
अकेलेपन की डायन फिर भी डराती;
निकल चला वो उजालों की ओर,
बाँध हाथों में उम्मीदों की डोर;
टूटे ना उम्मीद विश्वास है अटूट,
जा पहुँचा उस लक्ष्य जो है अचूक;
फिर भी चाहिए जग को,
उसके होने का प्रमाण;
आनंदित है वो सर्वशक्तिमान।"
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