Friday, September 27, 2019

"मेरी कलम ही पहचान है"


कलम कहती कुछ ऐसा फ़साना,
मेरी लिखावट की शान है;
मेरी कलम ही पहचान है।

लेख लिख - लिख स्याही खत्म,
फिर भी न उपजे भाव मन भस्म;
इतराती कहती कुछ ऐसा तराना,

मेरी लिखावट की जान है,
मेरी कलम ही पहचान है।

आधुनिक समय मे कलम की सूरत बदली,
खत्म स्याही स्वयं को भर न पायी पगली;
पुचकाराती कहती कुछ ऐसा गाना,

मेरी लिखावट की मान है,
मेरी कलम ही पहचान है।


"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...