"फिर वही दिल वो लाया है।
आकाश से छीनकर,
तारों से सजाया है;
कलरव करती नदियों के,
जल में भिगाया है;
शामली सुनहरी गुनगुनी,
धूप में सुखाया है;
झड़ते हुए पुष्प पराग,
से महकाया है;
फिर वही दिल वो लाया है।
ठुकराया उसे कितनी दफा,
कितनी दफा वो मुरझाया है;
जाने फिर से उसे क्या सूझी,
फिर वही दिल वो लाया है।"