Tuesday, September 6, 2022

"फिर वही दिल वो लाया है"

"फिर वही दिल वो लाया है।

आकाश से छीनकर,

तारों से सजाया है;

कलरव करती नदियों के,

जल में भिगाया है;

शामली सुनहरी गुनगुनी, 

धूप में सुखाया है;

झड़ते हुए पुष्प पराग,

से महकाया है;

फिर वही दिल वो लाया है।

ठुकराया उसे कितनी दफा,

कितनी दफा वो मुरझाया है;

जाने फिर से उसे क्या सूझी,

फिर वही दिल वो लाया है।"




Saturday, January 29, 2022

"अप्रतिमा"

"आत्मा का आवरण हो गया चूर,
जब हो गयी वो स्वयं शरीर से दूर;
मिलन की आस में परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का वो अप्रतिम नूर।
पधारते हुए निहारा उन्हें,
पर थे वो कोसो दूर;
मिलन की आस मे परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का अप्रतिम नूर।"



"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...