Saturday, September 28, 2024

"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ,

चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ;

बोले सवार हो शीर्ष पर एकल,

जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल;

उतना ही गर्त मे गिरा हुआ।

वर्तमान से भावी काल की सैर कराये, 

भूत बन कर भी कच्ची नींद डराए;

उल्टे पांव भाग जब स्वयं तक आये, 

चासनी क्यों अब खुले मुँह करछाए;

रस लगे नीरस, कटु और तीता हुआ, 

अपमान का विष है आखिर मथा हुआ।"



"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...