Saturday, March 21, 2020

"बेचैन रात्रि काल"

"सोता माथे भस्म रमाये,
कोई तो आंखो नींद दे जाये;
सकारात्मकता की परिपाटी पर,
नकारात्मकता चिल्लाये हाये - हाये।

जब आधी रात आँख खुल जाये,
अंधेरो की ओट से रोशनी झिलमिलाये;
फिर से पूँछु ओ बैरी निंदिया,
तू काहे न पलकें झपकाये।

भीनी सी शांति मन को सुहाये,
जब निशा उसे निलंबित कर जाये;
ध्यान मग्न हो स्वप्न लोक सुहाये,
तो कैसे न निंदिया भागी चले आये।"


"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...