"सोता माथे भस्म रमाये,
कोई तो आंखो नींद दे जाये;
सकारात्मकता की परिपाटी पर,
नकारात्मकता चिल्लाये हाये - हाये।
जब आधी रात आँख खुल जाये,
अंधेरो की ओट से रोशनी झिलमिलाये;
फिर से पूँछु ओ बैरी निंदिया,
तू काहे न पलकें झपकाये।
भीनी सी शांति मन को सुहाये,
जब निशा उसे निलंबित कर जाये;
ध्यान मग्न हो स्वप्न लोक सुहाये,
तो कैसे न निंदिया भागी चले आये।"
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