देता है खुले मुंह जवाब;
ओढ़ ले झूठ जितने नकाब,
सत्य ढूँढ लेगी निगाहें लाजवाब।
सत्य को किसी का डर नही,
झूठ का अपना कोई घर नही;
झूठ की चाल भले ही मंद हो,
आवाज उसकी पर्वत सी बुलंद हो;
अनुभव ओढ़ लेगा नीला आकाश,
फिर पूरी होगी सत्य की तलाश।
बन कठपुतली नाचे दर - दर झूठ,
कभी तो आएगा पहाड़ के नीचे ऊँट;
अनुभव की डोर रोके कठपुतली के पैर,
नजर आएंगे अपने, समझ जाएंगे गैर।