"कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम;
समझ न आये भरम;
खुले आम प्यार को देख,
गुस्से से खून उबाल क्यो गरम;
रंग नही साफ तो शरम,
अंध भक्ति का जाल है धरम।
गुस्से से खून उबाल क्यो गरम;
रंग नही साफ तो शरम,
अंध भक्ति का जाल है धरम।
कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम;
समझ न आये भरम;
मन के अरमान हो चाहे नरम,
फिर भी कट्टर विचार कहलाये परम;
घुंघरू पैर बाँध थिरके कला,
फरक क्या किरन हो या करन;
फिर भी कट्टर विचार कहलाये परम;
घुंघरू पैर बाँध थिरके कला,
फरक क्या किरन हो या करन;
कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम।"
समझ न आये भरम।"
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