Saturday, November 23, 2019

"मृत्यु मोक्ष"


मृत्यु मोक्ष तक साधना है, 
साधना नही ये अराधना है;
विकल्प का कोई मार्ग नही, 
काश! कोई मार्ग होता सही। 

जीवन जब जल - जल जिया, 
जब प्यासे ने जल न पिया;
परिलक्षित हो उठा वो उसमे, 
स्वर्ग की यात्रा पूरी की जिसने। 

सबने उससे किया क्यो द्वेष, 
किया भी तो बदल कर भेष;
सब लूट लिया उसका इस देश, 
चल दिया पाताल ओर समझ कर स्वदेश। 


Friday, September 27, 2019

"मेरी कलम ही पहचान है"


कलम कहती कुछ ऐसा फ़साना,
मेरी लिखावट की शान है;
मेरी कलम ही पहचान है।

लेख लिख - लिख स्याही खत्म,
फिर भी न उपजे भाव मन भस्म;
इतराती कहती कुछ ऐसा तराना,

मेरी लिखावट की जान है,
मेरी कलम ही पहचान है।

आधुनिक समय मे कलम की सूरत बदली,
खत्म स्याही स्वयं को भर न पायी पगली;
पुचकाराती कहती कुछ ऐसा गाना,

मेरी लिखावट की मान है,
मेरी कलम ही पहचान है।


Sunday, July 21, 2019

"बेवकूफ ही सही"

गौरवान्वित हूँ कि चालाक नही,
खुश हूँ कि बेवकूफ ही सही;
बेवकूफ भी हूँ कि बेवकूफ ही नही,
खुश हूँ  कि  बेवकूफ ही सही।

कर लेता नादानी एक बार,
पड़ जाती दोहरानी दो बार;
समझ आती कहानी उस बार,
दोहरा सकते क्या बेवकूफी लगातार।

बेवकूफ हूँ कि मूर्ख नही,
खुश हूँ कि बेवकूफ भी सही;
बेवकूफ भी हूँ जनाब बेवकूफ ही नही,
खुश हूँ कि बेवकूफ ही सही।

बैठा संग सामंजस्य समझदारी का,
परवाह न कर दुनियादारी का;
कर अतरंगी कुछ काम अनाड़ी का,
चालक नही होता किसी एक सवारी का।

अब कोई बेवकूफ बोले नही,
अगर बोले तो कह दो तभी;
बेवकूफ भी हूँ जनाब बेवकूफ ही नही,
खुश हूँ कि बेवकूफ ही सही।

Saturday, June 22, 2019

"अनुभवी सत्य"

अनुभव बोलता है जनाब,
देता है खुले मुंह जवाब;
ओढ़ ले झूठ जितने नकाब,
सत्य ढूँढ लेगी निगाहें लाजवाब।

सत्य को किसी का डर नही,
झूठ का अपना कोई घर नही;

झूठ की चाल भले ही मंद हो,
आवाज उसकी पर्वत सी बुलंद हो;
अनुभव ओढ़ लेगा नीला आकाश,
फिर पूरी होगी सत्य की तलाश।

बन कठपुतली नाचे दर - दर झूठ,
कभी तो आएगा पहाड़ के नीचे ऊँट;
अनुभव की डोर रोके कठपुतली के पैर,
नजर आएंगे अपने, समझ जाएंगे गैर।





Saturday, June 1, 2019

"करम भरम“

"कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम;
खुले आम प्यार को देख,
गुस्से से खून उबाल क्यो गरम;
रंग नही साफ तो शरम,
अंध भक्ति का जाल है धरम।
कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम;
मन के अरमान हो चाहे नरम,
फिर भी कट्टर विचार कहलाये परम;
घुंघरू पैर बाँध थिरके कला,
फरक क्या किरन हो या करन;
कैसा है ये करम,
समझ न आये भरम।"

Mai Radha Teri (Kathak Dance)





























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Thursday, May 16, 2019

"वो कौन है?"

जिसने उसे बदनाम किया,
हाँ जिसने सरेआम किया,
कुछ न बोला वो उस वक्त,
चुप रहा वो बनके सख्त;
खुश थे जो ऐसा कर के,
भूल गये वो अपना वक्त,
हस रहे थे वो उसपे,
रो रहा था दिल का हर एक दरख़्त।
लेकिन नया दिन आना था,
आ गया बस वो पल,
खुश है वो उनसे दूर जा के,
खुश है वो उनका साथ पा के;
नफरतों क उबार मे,
दे गया वो चैन और सुकून ला के,
दुनिया अब दिखाई नही देती,
जब से उसने सबके दिल झांके।

Wednesday, March 6, 2019

"राहू केतु“

राहू केतु ने मचा रखी थी हलचल,
पहुंच गए अब दूसरे संसार में,
चुन लिया है अलग रास्ता,
कहानी फसी थी उनकी मझधार में।
एक को मिला न कोई अपना,
दूसरा किसी और सिर सवार है,
भटकती आत्मा को बनाए है प्रीतम,
अब जीवन सबका खुशहाल है।



"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...