Saturday, September 28, 2024

"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ,

चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ;

बोले सवार हो शीर्ष पर एकल,

जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल;

उतना ही गर्त मे गिरा हुआ।

वर्तमान से भावी काल की सैर कराये, 

भूत बन कर भी कच्ची नींद डराए;

उल्टे पांव भाग जब स्वयं तक आये, 

चासनी क्यों अब खुले मुँह करछाए;

रस लगे नीरस, कटु और तीता हुआ, 

अपमान का विष है आखिर मथा हुआ।"



Tuesday, September 6, 2022

"फिर वही दिल वो लाया है"

"फिर वही दिल वो लाया है।

आकाश से छीनकर,

तारों से सजाया है;

कलरव करती नदियों के,

जल में भिगाया है;

शामली सुनहरी गुनगुनी, 

धूप में सुखाया है;

झड़ते हुए पुष्प पराग,

से महकाया है;

फिर वही दिल वो लाया है।

ठुकराया उसे कितनी दफा,

कितनी दफा वो मुरझाया है;

जाने फिर से उसे क्या सूझी,

फिर वही दिल वो लाया है।"




Saturday, January 29, 2022

"अप्रतिमा"

"आत्मा का आवरण हो गया चूर,
जब हो गयी वो स्वयं शरीर से दूर;
मिलन की आस में परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का वो अप्रतिम नूर।
पधारते हुए निहारा उन्हें,
पर थे वो कोसो दूर;
मिलन की आस मे परिलक्षित सा,
ऊपर वाले का अप्रतिम नूर।"



Saturday, July 3, 2021

"है वो सर्वशक्तिमान"

"आनंदित है वो सर्वशक्तिमान,
क्यों ठहरा हैरान सा परेशान;
दुःख परिलक्षित करते सुख,
जैसे हवायें बदले अपना रुख;
हो सब संगी, साथी या घराती, 
अकेलेपन की डायन फिर भी डराती;
निकल चला वो उजालों की ओर, 
बाँध हाथों में उम्मीदों की डोर;
टूटे ना उम्मीद विश्वास है अटूट, 
जा पहुँचा उस लक्ष्य जो है अचूक;
फिर भी चाहिए जग को,
उसके होने का प्रमाण;
आनंदित है वो सर्वशक्तिमान।"




Thursday, February 25, 2021

'सम्पूर्णता'

 

"ऐसा युद्ध स्वयं के विरुद्ध,
लड़ता चलूँ बिन अवरुद्ध;
न कोई शस्त्र न कोई अस्त्र,
आत्मविश्वास विचलित,
हुयी मनोशांति ध्वस्त।
आत्म - मंथन आत्म - चिंतन,
कुछ न भाये;
सम्पूर्णता की परिभाषा जो,
चाह कर भी पूर्ण न हो पाये।
परिभाषा लिखे बिना,
अग्रसर होता हूँ मैं;
अग्रसर होकर भी खुद में,
संपूर्ण लौटा न मैं।"



Wednesday, September 30, 2020

"कुमार - कुमारी"

"तुम हो कुमारी बन कुमार क्या करोगी,
अपने आप से रिहा क्या करोगी;
मैं ठहरा मजबूर, सबमे मशहूर, 
तुम खुद में मशगूल, सबसे सुदूर। 
ना होना मुझ सा मैं तो हूँ बस एक माया, 
मिल जाना स्वयं से जो है तेरी असल काया;
स्वतन्त्र कैदी समान मेरा न स्वयं से वास्ता,
तुम चल पड़ना बेफिक्र सी जो है समाज से भिन्न रास्ता।"



Friday, August 21, 2020

"कुछ ऐसा करना है"

कभी - कभी मरना है,
फिर कैसे भी लड़ना है;
खुद से ही हताश हो कर,
खुद को अभिप्रेरित करना है।

कभी - कभी डरना है,
फिर ऐसा कुछ करना है;
खुद से ही निराश हो कर,
खुद को ही मनोरंजित करना है।

कभी - कभी रुकना है,
फिर पीठ पीछे मुड़ना है;
खुद को ही तलाश कर,
खुद को आनंदित करना है।

बस....ऐसा कुछ करना है।


Wednesday, June 17, 2020

लॉकडाउन

"दल का दल,
चला पैदल;
गर्भ मे लिए,
पेट का दर्द।
भूख थी शैतान,
ले रही थी जान;
दो जून न रोटी,
बस खुला आसमान।"


Saturday, March 21, 2020

"बेचैन रात्रि काल"

"सोता माथे भस्म रमाये,
कोई तो आंखो नींद दे जाये;
सकारात्मकता की परिपाटी पर,
नकारात्मकता चिल्लाये हाये - हाये।

जब आधी रात आँख खुल जाये,
अंधेरो की ओट से रोशनी झिलमिलाये;
फिर से पूँछु ओ बैरी निंदिया,
तू काहे न पलकें झपकाये।

भीनी सी शांति मन को सुहाये,
जब निशा उसे निलंबित कर जाये;
ध्यान मग्न हो स्वप्न लोक सुहाये,
तो कैसे न निंदिया भागी चले आये।"


Saturday, November 23, 2019

"मृत्यु मोक्ष"


मृत्यु मोक्ष तक साधना है, 
साधना नही ये अराधना है;
विकल्प का कोई मार्ग नही, 
काश! कोई मार्ग होता सही। 

जीवन जब जल - जल जिया, 
जब प्यासे ने जल न पिया;
परिलक्षित हो उठा वो उसमे, 
स्वर्ग की यात्रा पूरी की जिसने। 

सबने उससे किया क्यो द्वेष, 
किया भी तो बदल कर भेष;
सब लूट लिया उसका इस देश, 
चल दिया पाताल ओर समझ कर स्वदेश। 


Friday, September 27, 2019

"मेरी कलम ही पहचान है"


कलम कहती कुछ ऐसा फ़साना,
मेरी लिखावट की शान है;
मेरी कलम ही पहचान है।

लेख लिख - लिख स्याही खत्म,
फिर भी न उपजे भाव मन भस्म;
इतराती कहती कुछ ऐसा तराना,

मेरी लिखावट की जान है,
मेरी कलम ही पहचान है।

आधुनिक समय मे कलम की सूरत बदली,
खत्म स्याही स्वयं को भर न पायी पगली;
पुचकाराती कहती कुछ ऐसा गाना,

मेरी लिखावट की मान है,
मेरी कलम ही पहचान है।


"अपमान का विष"

"अपमान का विष समुद्र में मथा हुआ, चासनी मे लिप्त, रस से गूंथा हुआ; बोले सवार हो शीर्ष पर एकल, जितना ऊँचा हो प्रतीत पागल; उतना ही गर्त म...