“हाँ भाई हाँ मुझे...
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।
आएँगी जो भी मुसीबतें,
हाथ खोल स्वागत करना है;
उन्ही हाथो से झकझोर कर,
उनपर टूट पड़ना है।
जो कहे तू ये नहीं कर सकता,
उनसे ‘क्यों’ का प्रश्न करना है;
उचित उत्तर न मिलने पर,
एक और प्रश्न जड़ना है।
हाथ खोल स्वागत करना है;
उन्ही हाथो से झकझोर कर,
उनपर टूट पड़ना है।
जो कहे तू ये नहीं कर सकता,
उनसे ‘क्यों’ का प्रश्न करना है;
उचित उत्तर न मिलने पर,
एक और प्रश्न जड़ना है।
हाँ भाई हाँ मुझे...
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।
बहुत छिपा लिया स्वयं को स्वयं में,
मन ही मन अब न कुढ़ना है;
कहना है अब सब से,
सबके साथ मुझे जुड़ना है।
नीले आसमान के ऊपर से,
आजादी के पंख फैलाये उड़ना है;
दोहरे व्यक्तित्व की कहानियां,
आत्मा की दृष्टि से पढ़ना है।
मन ही मन अब न कुढ़ना है;
कहना है अब सब से,
सबके साथ मुझे जुड़ना है।
नीले आसमान के ऊपर से,
आजादी के पंख फैलाये उड़ना है;
दोहरे व्यक्तित्व की कहानियां,
आत्मा की दृष्टि से पढ़ना है।
हाँ भाई हाँ मुझे...
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।”
अपनी बातों पे अड़ना है,
स्वयं की ये लड़ाई है ;
स्वयं के लिए लड़ना है।”
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