Saturday, July 21, 2018

“वगैरह...वगैरह”

“है ये जो आपके माथे पर शिकन वगैरह,
क्या है किसी की यादों का दिल में बसेरा,
पूछे सवाल आपसे चित चोर समझ के,
जैसे रिश्तेदार करते है पूछताछ वगैरह,
अब अपनेपन का हक़ अदा कर भी दीजिये,
जैसे पुलिस करती है नाको पे चालान वगैरह,
मालूम हुआ बिल्ली तो मुफ़्त में बदनाम थी,
कटोरे में तो कुछ और था सामान वगैरह।”




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